एसएचओ की चौंकाने वाली हरकत: बलात्कार के मामले में निर्दोष को सजा
नाबालिग से बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा काट रहे बहेरा थाना क्षेत्र के निवासी मुकेश कुमार को आखिरकार पटना हाईकोर्ट और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के हस्तक्षेप के बाद न्याय मिला है। डीजीपी के मामले पर गंभीरता से ध्यान देने के कारण मुकेश को गलत तरीके से सजा देने के लिए जिम्मेदार जांचकर्ता और एसएचओ दोनों को निलंबित कर दिया गया। संबंधित अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (एसडीपीओ) को भी नोटिस जारी किया गया है, साथ ही विभागीय कार्रवाई लंबित है।
मुकेश के बरी होने के बाद डीजीपी विनय कुमार ने जांच के आदेश दिए, जिसके बाद कमजोर वर्ग और अपराध जांच विभाग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) ने जांच टीम गठित की। जांच में पाया गया कि कांड संख्या 283/20 के अनुसंधानकर्ता सहायक उपनिरीक्षक जावेद आलम (वर्तमान में सारण जिले के अवतारनगर के एसएचओ), पूर्व बहेरा एसएचओ सुनील कुमार (वर्तमान में मधुबनी में एसएसपी कार्यालय में पुलिस निरीक्षक) और पूर्व बेनीपुर एसडीपीओ उमेश्वर चौधरी (वर्तमान में पालीगंज 2 में डीएसपी) सभी गलत सजा में शामिल थे।
एसपी ने कार्रवाई का आदेश दिया
इन खुलासों के बाद दरभंगा एसएसपी को संबंधित अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। उनके तबादलों के कारण संबंधित जिलों के एसपी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की है और विभागीय कार्यवाही के लिए एक सप्ताह के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
मुकेश को हाईकोर्ट से बरी किए जाने के बाद जांच शुरू की गई। क्राइम इन्वेस्टिगेशन ग्रुप (सीआईजी) के एक उप महानिरीक्षक (डीआईजी) स्तर के अधिकारी ने मुकेश और उसके परिवार से विस्तृत जानकारी एकत्र की। इस बारे में सवाल उठाए गए कि कैसे एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाया गया, निर्णय लेने की प्रक्रिया में कौन शामिल था और गलत सजा के पीछे क्या मकसद थे।
6 लाख रुपए की रिश्वत की मांग
इस मामले में एक अहम सबूत 57 मिनट की ऑडियो रिकॉर्डिंग थी, जिसमें पंचायत की बैठक के दौरान मुकेश के पिता से 6 लाख रुपए की मांग की गई थी। जब परिवार ने पैसे देने से इनकार कर दिया, तो मुकेश पर झूठा आरोप लगा दिया गया।
सामाजिक कार्यकर्ता रवींद्रनाथ सिंह, जिन्हें चिंटू के नाम से भी जाना जाता है, ने मुकेश की रिहाई के लिए अथक संघर्ष किया। मुकेश को सबसे पहले 8 अगस्त, 2020 को बहेरा थाना क्षेत्र में नाबालिग से कथित बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 29 नवंबर, 2023 को दरभंगा पॉक्सो कोर्ट ने उसे 20 साल कैद की सजा सुनाई। हालांकि, 28 नवंबर, 2024 को पटना हाईकोर्ट ने उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया।
मुकेश को 3 दिसंबर, 2024 को दरभंगा जेल से रिहा किया गया और तब से वह अपने साथ हुए अन्याय को उजागर करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
जांचकर्ता का कबूलनामा
घटनाओं के एक चौंकाने वाले मोड़ में, जांचकर्ता जावेद आलम ने अदालत में खुलासा किया कि मुकेश निर्दोष था और असली अपराधी उसी गांव का निवासी दिनेश कुमार था। हालांकि, वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव में, मुकेश के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, जिसके कारण उसे गलत तरीके से दोषी ठहराया गया। यह मामला अब पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार और अन्याय का प्रतीक बन गया है, और यह सुनिश्चित करने के प्रयास चल रहे हैं कि जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।
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