“गोल्डन डोम” और स्पेस वॉरफेयर: भविष्य की युद्ध प्रणाली की ओर एक क्रांतिकारी कदम
आज से लगभग 115 वर्ष पूर्व तक, युद्ध केवल दो ही मोर्चों पर लड़े जाते थे—जमीन और समुद्र। थल सेना और नौसेना ही किसी भी देश की सैन्य ताकत का प्रतिनिधित्व करती थीं। उस दौर में “वायु सेना” जैसी कोई अवधारणा नहीं थी। लेकिन जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पहली बार युद्ध की लपटें आसमान तक पहुँचीं, तभी वायु सेना का विचार जन्मा और ब्रिटेन ने दुनिया की पहली वायु सेना — रॉयल एयर फोर्स — की स्थापना की।
इसके बाद से, वायु सेना ने सभी प्रमुख युद्धों में निर्णायक भूमिका निभाई है। चाहे द्वितीय विश्व युद्ध हो, कारगिल युद्ध या हालिया भारत-पाकिस्तान संघर्ष — हर जगह वायु सेना का योगदान अभूतपूर्व रहा है। आधुनिक युद्ध की परिभाषा अब थल, जल और नभ में फैली हुई है। लेकिन अब ऐसा समय आ रहा है, जब युद्ध इन तीन पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए अंतरिक्ष तक पहुँच जाएगा।
अमेरिका की “स्पेस फोर्स” और गोल्डन डोम: युद्ध का नया अध्याय
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब “स्पेस फोर्स” की घोषणा की, तो यह मात्र एक सैन्य संगठन की बात नहीं थी, बल्कि भविष्य की वैश्विक सुरक्षा नीति का संकेत था। इस घोषणा के साथ ही उन्होंने एक क्रांतिकारी रक्षा प्रणाली — “गोल्डन डोम” — को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया, जो अंतरिक्ष से दुश्मन के हमलों को नाकाम करने में सक्षम होगी।
“गोल्डन डोम” नाम इज़राइल के प्रसिद्ध Iron Dome से प्रेरित है, जिसने हाल ही में गाज़ा के साथ हुए संघर्ष में अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। उसी तर्ज पर अमेरिका का गोल्डन डोम अंतरिक्ष में तैनात रहकर मिसाइल और ड्रोन हमलों का पता लगाएगा और उन्हें वहीं से निष्क्रिय कर देगा।
वर्तमान एयर डिफेंस सिस्टम बनाम गोल्डन डोम
अब तक की सभी प्रमुख एयर डिफेंस प्रणालियाँ — जैसे भारत की S-400, आकाश, या इज़राइल की आयरन डोम — जमीन पर या विमानों में लगे रडार और सेंसर पर आधारित हैं। ये सिस्टम दुश्मन की मिसाइलों और ड्रोन को ट्रैक करते हैं और जमीन से ही इंटरसेप्टर मिसाइल दागते हैं। इनका कवरेज सीमित होता है और इनकी प्रतिक्रिया समय भी कभी-कभी सीमाओं में बंधा होता है।
लेकिन अमेरिका का गोल्डन डोम इस पूरी अवधारणा को बदल देगा। इसमें:
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सभी रडार और इंटरसेप्टर अंतरिक्ष में स्थापित किए जाएंगे।
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यह प्रणाली किसी भी देश द्वारा दागी गई मिसाइल का वास्तविक समय में पता लगा सकेगी।
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और स्पेस-बेस्ड इंटरसेप्टर मिसाइल के माध्यम से हमले को अंतरिक्ष से ही निष्फल कर देगी।
मान लीजिए भविष्य में चीन अमेरिका पर मिसाइल हमला करता है, तो गोल्डन डोम उस मिसाइल को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले ही नष्ट कर देगा। यानी यह प्रणाली न केवल ज़मीन से हवा में बल्कि अंतरिक्ष से अंतरिक्ष में ही कार्रवाई करने में सक्षम होगी।
क्या भविष्य में सभी देशों को स्पेस फोर्स बनानी पड़ेगी?
गोल्डन डोम और स्पेस फोर्स की अवधारणा यह संकेत देती है कि भविष्य के युद्ध अब सिर्फ थल, जल और नभ तक सीमित नहीं रहेंगे। जिस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध ने वायु सेना को जन्म दिया था, उसी तरह 21वीं सदी का यह तकनीकी युग शायद स्पेस वॉरफेयर को वास्तविकता में बदल दे।
भारत समेत सभी शक्तिशाली देशों को अब इस ओर गंभीरता से विचार करना होगा कि क्या वे भी अपनी “स्पेस फोर्स” का गठन करें? क्या भविष्य के युद्धों में स्पेस डिफेंस सिस्टम न होने का मतलब सीधे-सीधे हार मान लेना होगा?
निष्कर्ष
गोल्डन डोम केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं है, यह भविष्य की रणनीतिक सोच का हिस्सा है। यह दर्शाता है कि अब सुरक्षा की सीमाएँ केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि खगोलीय हो गई हैं। अमेरिका का यह कदम दुनिया की सभी सैन्य शक्तियों के लिए एक चुनौती और प्रेरणा दोनों है। हमें यह समझना होगा कि युद्ध अब ज़मीन या आसमान में नहीं, बल्कि उन सीमाओं में लड़े जाएंगे जहाँ अब तक इंसान ने केवल कल्पना की थी—अंतरिक्ष में।
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